हिमालय की गोद में
एक धार, एक गाड़, एक पातल,एक घर
कहीं पर भी जा सकता है देखा
ये कोमल कांधा।
सीने तक लटकता
सर पर रखा घास-लकडियों का बोझ संभाले
लकडियों की झिरी से रास्ता नापता
छाले भरे पैरों से रास्ता नापता
चार, सोलह, बत्त्तीस यहाँ तक कि
कभी-कभी चौंसठ वर्षीया
बच्ची ,युवती ,ब्याहता ,बूढी आमा
यहाँ तक कि एक पूर्ण-गर्भा माँ का
एक गाड़ से धार तक चढ़ता
जा सकता है देखा
ये कोमल कांधा
सानी लगाता ,गोबर उठाता गोथमें
बकरी ,भेद ,गाय चराता
जंगल-जंगल भटकता
एक बैल के साथ घाटी के
सीध्हीदार खेतों में हल चलाता
छोटे बड़े पेट भरने कि चिंता में
गधेरे से लोडे ,बथुआ, चौलाई
या बिच्छू बूटी तोड़ता
जा सकता है देखा ये कोमल कांधा ।
पैदल ऊँची नीची पथरीली रपटीली
बेराह कि राह पर कलसा गगरी
यहाँ तक कि पाँच से पन्द्रह लीटर का
घी का पानी भरा डिब्बा लाते
जा सकता है देखा
ये कोमल कांधा ।
बावजूद अपने मजबूत अस्तित्व के
शराबी, जुआरी ,निठल्ले पति से
पीटकर जवान,घर से भागे
या सरहद पर रखवाली करते
बेटे कि याद में
आंसू बहाता, पति, पुत्र को दुआएं देता जा सकता है देखा
ये कोमल कांधा ।
-रजनी रंजना
Monday, October 6, 2008
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1 comment:
वर्तनी का ध्यान रखें. लिखते रहें
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