Wednesday, October 1, 2008

जया जादवानी की कविताएँ


कुहरे और धुंध की ओर

मुझे नहीं पता था एक दिन
मैं अपनी तलाश में
खो दूँगी अपने को ही
खो देता है राख होकर
कागज़ अपने आकार
मौन होकर प्रार्थनाएँ
खो देती हैं शब्द अपने
धीरे-धीरे रंग सारे जीवन के
बैठ जाते जल की सतह में खामोश
धुले हुए सफ़ेद चेहरे लिए
धीरे-धीरे जाती खाली नाव
उस पार
कुहरे और धुंध में लिपटी हुई
कुहरे और धुंध की ओर...


जगह

एक चिडिया रह सकती है एक पेड़ में
एक पेड़ में बहुत सी चिडियाएँ रह सकती हैं
जगहों के इरादे में है जगह
जब भी जाओ निकट उनके
सरक कर जगह दे देती हैं ...


मैं निर्वसना

ले गया कपडे सब मेरे
दूर बहुत दूर
काल बहती नदी में
मैं निर्वसना
तट पर
स्वप्न देखती देह का ।


समय

समय के माथे पर बिंदी
लगाती हूँ समय की
इस तरह शब्द एक रचती हूँ
रंग में धुलती हूँ समय के
इस तरह इसे पढ़ती हूँ
समय को रचना
समय ही हो जाना है
अंततः ...


सफ़ेद में सफ़ेद

जैसे पहचाना जा सकता है
नीले में नीला
पीले में पीला
लाल में लाल
ऐसे ही पहचान जाओगे मुझे
जब खींचोगे एक लकीर
सफ़ेद में सफ़ेद की .







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