Wednesday, October 8, 2008

देवी का दर नहीं खुलेगा

लाख खिला ले कन्या कोई,
सोच बिना फल नहीं मिलेगा,
बेटी की गर चाह नहीं है,
देवी का दर नहीं खुलेगा ।
खटखट चाहे जितनी कर लो
हलवा ,पूरी ,चने बनाकर,
भोग लगाओ चाहे जितना,
विधि -विधान से व्रत -पूजन कर,
माँ का दिल है नहीं छुएगा ।
देवी का दर नहीं खुलेगा।।

1 comment:

Dr. Upendra said...

भई दिल छू लिया।

आज ही तो छोहरियां खिलाई हैं मेरी धर्म पत्नी (न जाने केवल पत्नी लिखने में कोई धर्म आड़े न आ जाए) ने। जैसे ही छोहरियां हमारे घर से अतिसंतृप्त (तीन जगह पहले ही पूजी जा चुकी थीं) होकर निकलीं, व्याकुल भाव पड़ोसन ने घंटी बजाई। बोलीं- अरे भाई साहब वह कन्याएं ! स्मार्ट पड़ोसन को दरवाजे पर देख भीतर से श्रीमती जी लपक कर अवतरित हुईं और मुझसे पहले ही बोल पड़ीं- अरे वे सब तो पांच मिनट पहले चली गईं ज्ञानखंड तीन में किसी के घर।

हाय रे, अब छोहरियां कहां से जुटाऊं। कैसे पूरा होगा व्रत ? माथे पर हाथ धरे बेचारी पड़ोसन मेरे दोनो पुत्रों और ऊपर वालों के तीन पुत्रों पर निगाह डालती लौट गईं मानों कह रही हों कि काश यह पांचो कन्या होते ?

यह वही मैडम हैं जो एक साल के भीतर तीसरी बार एबार्शन करा चुकी हैं। पता नहीं क्यों, वैसे पत्नी के मुताबिक उन्हें एक पुत्र के बाद दूसरा भी बेटा ही चाहिए। राम लखन की जोड़ी जो बनानी है।

धन्य हैं देवी मैया और साधुवाद का पात्र है स्वान्तस्सुखाय सर्वजनहिताय। काश आपकी बात ऊपर वाली और नीचे वाली दोनो देवियों तक पहुंचती और देवी जी हम कलजुगियों की आंखें खोल देतीं।