Monday, September 29, 2008

अर्जुन सिंह रोए क्यूँ


माँ के तीन रूप

बच्चे के लिए
माँ है उसकी अस्मिता
युवक के लिए
माँ है एक बोझिल रिश्ता
प्रौढ़ के लिए
माँ है औपचारिकता .

Sunday, September 28, 2008

नई लीक

ज़िंदगी और ज़माने की कशमकश से घबराकर
मुझसे मेरे लड़के पूछते हैं कि आप ने हमें पैदा क्यों किया ?
और मेरे पास इसके सिवा कोई जवाब नहीं है कि मेरे बाप ने भी मुझसे बिना पूछे मुझे पैदा किया था। मेरे पिता से बिना पूछे उनके पिता ने उन्हें पैदा किया था।
और मेरे बाबा से बिना पूछे उनके पिता जी ने
उन्हें...ज़िंदगी और ज़माने की कशमकश पहले भी थी और अब भी है।
शायद ज़्यादा। आगे भी होगी, शायद और ज़्यादा।
तुम नई लीक धरना।
अपने बेटों से पूछकर उन्हें पैदा करना।

हरिवंश राय बचन

Saturday, September 27, 2008

मान्यों व मित्रों

आजकल गांधीजी एक विज्ञापन को लेकर चर्चा में हैं. या ये कहें कि गांधीजी के चलते एक विज्ञापन चर्चा में है. विज्ञापन 28 अगस्त को डेनमार्क के अख़बार Morgenavisen Jyllands Posten ने छापा था. ये वही अख़बार है जिसमें प्रकाशित इस्लामी आतंकवाद विषयक कुछ कार्टूनों में पैगंबर मोहम्मद को दिखाए जाने पर दुनिया भर में हंगामा हुआ था. डेनमार्क सरकार एक अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक संकट में फंस गई थी. और, आज भी इस्लामी देशों में डेनिश नागरिकों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी होती है.
अब इसी अख़बार ने तीन विज्ञापनों की एक सिरीज़ छापी है- गांधीजी, नेल्सन मंडेला और दलाई लामा के चित्रों के साथ आज़ादी लेते हुए. ये भी नहीं कहा जा सकता कि एक अच्छे उद्देश्य के लिए ऐसा किया गया है, क्योंकि मुख्य उद्देश्य है- अख़बार का, उसके खुलेपन का प्रचार करना. लेकिन इतना तो तय है कि गांधीजी या अन्य दो महापुरुषों के चित्रों को फ़ोटोशॉप करने के बाद भी अख़बार का उद्देश्य उनकी छवि बिगाड़ने का तो बिल्कुल ही नहीं रहा होगा. क्योंकि एक हाथ में बोतल(संभवत: बीयर की) लिए दूसरे हाथ से कोई मांस उत्पाद(संभवत: हॉटडॉग) भून रहे गांधीजी के चित्र के नीचे लिखा है- 'ज़िंदगी आसान होगी, यदि आप आवाज़ नहीं उठाओगे' इसी पंक्ति में आगे अख़बार की तस्वीर है. और पंक्ति ख़त्म हो रही है- 'बहस करो' के संदेश पर.
संदेश भले ही गांधीजी की छवि से मेल खाता हो, उनका चित्रण इसलिए अनुपयुक्त है कि गांधीजी शराब के घोर विरोधी और शाकाहार के ज़बरदस्त समर्थक थे. चूंकि गांधीजी राष्ट्रपिता भी हैं, सो भारत सरकार गांधीजी के इस व्यंग्यचित्र को लेकर अख़बार से शिकायत दर्ज़ कराने को बाध्य हुई. हालाँकि विरोध का स्वर नरम ही रखा गया.हमें इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना ही चाहिए। डेनमार्क के भारतीय राजदूत ने आपसभी से यह अपेक्षा करते हुए अपनी पहल की, उन्हें साधुवाद।
डॉ उपेंद्र

"I would like to draw your attention to a picture of Mahatma Gandhi, which was published in Morgenavisen Jyllands-Posten on 28 August.
Mahatma Gandhi is depicted by a barbecue. In one hand he has a fork speared with a piece of meat. He has a bottle with a coloured liquid in the other hand.
According to the caption Mahatma was a person with strong opinions and strong beliefs. However the picture has distorted Mahatma's message. He was a vegetarian and had great esteem for animals. He never drank alcohol and warned of adverse health effects of alcohol."
-Yogesh Gupta, India's Ambassador to Denmark

Sunday, September 21, 2008

कल कल छल छल

गंगोत्री से निकली पावन धारा की तरह बहते ही जाना है रास्ते की परवाह किए बिना। रास्ते में नाला भी मिल सकता है और नदी भी ,उपजाऊ खेत भी मिल सकते हैं और बंजर धरती भी । धारा का काम है बहते जाना,अपने स्नेह ,अपने ममत्व के अमृत-स्पर्श से ,अपने संपर्क में आने वाले प्रत्येक जड़ वा चेतन में प्राण भरने का प्रयास करना। गंग-धार को न तो मैला होना है ,न ही रूककर यह देखना कि उस रास्ते पर कितने फूल खिले , उसके स्पर्श का कोई प्रभाव पड़ा या नहीं.