Sunday, September 21, 2008

कल कल छल छल

गंगोत्री से निकली पावन धारा की तरह बहते ही जाना है रास्ते की परवाह किए बिना। रास्ते में नाला भी मिल सकता है और नदी भी ,उपजाऊ खेत भी मिल सकते हैं और बंजर धरती भी । धारा का काम है बहते जाना,अपने स्नेह ,अपने ममत्व के अमृत-स्पर्श से ,अपने संपर्क में आने वाले प्रत्येक जड़ वा चेतन में प्राण भरने का प्रयास करना। गंग-धार को न तो मैला होना है ,न ही रूककर यह देखना कि उस रास्ते पर कितने फूल खिले , उसके स्पर्श का कोई प्रभाव पड़ा या नहीं.

1 comment:

vidya singh said...
This comment has been removed by the author.