Wednesday, October 22, 2008

कलाकार प्रकृति का प्रेमी है
अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी ।

–रवीन्द्रनाथ ठाकुर

Thursday, October 9, 2008

राम बने मिटटी के माधो

जला रहे कागज़ के पुतले
रावण अब भी जिंदा है।
राम बने मिटटी के माधो
रामायण शर्मिंदा है ।।
उलट फेर के इस युग में
ahsaas samandar apnaa है ।
आंखों का पानी सूखा है
जीवन soona sapnaa है ।।

Wednesday, October 8, 2008

देवी का दर नहीं खुलेगा

लाख खिला ले कन्या कोई,
सोच बिना फल नहीं मिलेगा,
बेटी की गर चाह नहीं है,
देवी का दर नहीं खुलेगा ।
खटखट चाहे जितनी कर लो
हलवा ,पूरी ,चने बनाकर,
भोग लगाओ चाहे जितना,
विधि -विधान से व्रत -पूजन कर,
माँ का दिल है नहीं छुएगा ।
देवी का दर नहीं खुलेगा।।

Tuesday, October 7, 2008

नवरात्रि और कन्या-पूजन

शैलपुत्री -प्रकृति का पोषण
ब्रह्मचारिणी -ब्रह्माण्ड या खगोल
चंद्रघंटा -कला ,साहित्य ,नाद और शान्ति
कूष्मांडा -तृष्णा और तृप्ति
स्कंदमाता -मातृशक्ति ,स्त्रीभाव
कात्यायनी -पितृकुल रक्षक ,परिचय
कालरात्रि -काल पर विजय
महागौरी -अक्षत सुहाग की प्रतीक ,सौंदर्य
सिद्धिदात्री -धन-धान्य और समृद्धि

देवी के विभिन्न रूपों ब्रह्मचारिणी से लेकर महागौरी तक ,शैलपुत्री से लेकर कालरात्रि तक ,चंद्रघंटा ,कुष्मांडा से लेकर स्कंदमाता और कात्यायनी तक सिद्धिदात्री रूप में संपन्न होता है नवरात्री पूजन । इन्हीं रूपों में समाये हैं मानवता की सुख शान्ति के बीज -मंत्र .किंतु इन नौ दिनों के बाद कौन अनुभव करता है इस तथ्य को ?कौन पूजता है देवी-स्वरूप इन कन्याओं को अष्टमी और नवमी के अलावा ?
ये दो दिन तो गली मोहल्ला ढूंढ कर कन्या जिमाने के दिन हैं ।सात या नौ से कम में काम भी नही चलता ।मुश्किल हो जाती है इतनी कन्याएं आयें कहाँ से । चाय वाली, पान वाली ,काम वाली बाई सबसे बोलो तब कहीं जाकर पाँच -सात कन्याएं जुट पाती हैं । साहब परेशान ,मेमसाब परेशान और छोटी छोटी बच्चियां खा-खाकर परेशान . जितनी मिल जानी उतनी ही सही .साहब बाहर ही पाँव धुला देते हैं कन्याओं के .मेमसाब तब तक कन्याओं के लिए पैकेड ब्रंच तैयार कर चुकी होती हैं । "अजी सुनतेहो , ,अन्दर मत बुलाना ,वुडेन टेल्स ख़राब हो जायेंगे। पैकेट पकड़ा टीका लगा देते है , पैसे भी दे देना । "
अपना बच्चा होने को हो तो " हे भगवान् लड़का ही देना ।" लड़के की इतनी प्रबल इच्छा कीलड़का हो भी गया तो आधा लड़की जैसा । (आख़िर गर्भ में पल रहे बच्चे का स्वभाव तो वातावरण से प्रभावित होगा ही )। यह भी नहीं की पहले से एक भी लड़का नही इसलिए ऐसी सोच ।और फ़िर जीवन में सुख शान्ति की अदम्य इच्छा ।
अब दोनों कैसे सम्भव है ? क्या साल में एक दिन के कन्या-पूजन (खाना खिला देने और कुछ पैसे दे देने में )
में इतनी ताकत है क्या कीविभिन्न रूपों में naari का साथ जीवन को शान्ति ,सुख व् समृद्धि से भर दे.

Monday, October 6, 2008

कोमल कांधा

हिमालय की गोद में

एक धार, एक गाड़, एक पातल,एक घर

कहीं पर भी जा सकता है देखा

ये कोमल कांधा।

सीने तक लटकता

सर पर रखा घास-लकडियों का बोझ संभाले

लकडियों की झिरी से रास्ता नापता

छाले भरे पैरों से रास्ता नापता

चार, सोलह, बत्त्तीस यहाँ तक कि

कभी-कभी चौंसठ वर्षीया

बच्ची ,युवती ,ब्याहता ,बूढी आमा

यहाँ तक कि एक पूर्ण-गर्भा माँ का

एक गाड़ से धार तक चढ़ता

जा सकता है देखा

ये कोमल कांधा

सानी लगाता ,गोबर उठाता गोथमें

बकरी ,भेद ,गाय चराता

जंगल-जंगल भटकता

एक बैल के साथ घाटी के

सीध्हीदार खेतों में हल चलाता

छोटे बड़े पेट भरने कि चिंता में

गधेरे से लोडे ,बथुआ, चौलाई

या बिच्छू बूटी तोड़ता

जा सकता है देखा ये कोमल कांधा ।

पैदल ऊँची नीची पथरीली रपटीली

बेराह कि राह पर कलसा गगरी

यहाँ तक कि पाँच से पन्द्रह लीटर का

घी का पानी भरा डिब्बा लाते

जा सकता है देखा

ये कोमल कांधा ।

बावजूद अपने मजबूत अस्तित्व के

शराबी, जुआरी ,निठल्ले पति से

पीटकर जवान,घर से भागे

या सरहद पर रखवाली करते

बेटे कि याद में

आंसू बहाता, पति, पुत्र को दुआएं देता जा सकता है देखा

ये कोमल कांधा ।



-रजनी रंजना



Sunday, October 5, 2008

बुद्धिमान

सभी बुद्धिमान मनुष्य अपने आप को दुनिया के अनुरूप ढाल लेते हैं । सिर्फ़ कुछ लोग ऐसे होते हैं जो दुनिया को अपने अनुरूप बनाने में लगे रहते हैं । दुनिया में सारी तरक्की इन दूसरे तरह के लोगों पर ही निर्भर होती है ,जो हमेशा कुछ नया परिवर्तन लाने में लगे रहते हैं।
--बर्नार्ड शा

Saturday, October 4, 2008

इच्छाशक्ति

आंगन का छोटा या बड़ा होना
महत्त्वपूर्ण नहीं उनके लिए
जो आँगन के किसी कोने से
देखना चाहते हैं सूरज की रश्मियों को.
और वे जो करना नहीं चाहते यात्रा
apane आँगन की भी
जिन्हें उषा, सूरज,आँगन से कोई लेना-देना नही
वे करते हैं अक्सर कोशिश बेमानी सी
कैद करने की अपनी मुट्ठियों में
फूल के साथ-साथ फूल की सुगंध को भी
उन्हें शायद यह मालूम नही
jijeevisha छीन लेने पर
फूल तो दूर पत्तियां तक बगिया में अजन्मी रह जाएंगी
baanjh रह जाना होगा
पौधे के विनिर्माण की sari संभावनाओं को
और --- तब निस्पंद हो जाएँगे
समग्र 'सुन्दरम ' मेरे-तेरे ,उनके रसबोध भी ।
एकाकी 'शिव' या एकांगी 'सत्य '
तब समर्थ नही होंगे किसी भी शक्ति sambal से
'पारिजात' उगाने में किसी रस shoonya nandanvan में
शायद इसीलिये
अच्छा होगा यदि
फूल अपने गुलदान में सजाने के बजाय
टंगा रहने दिया जाय आँगन के गमले में
जिससे ,मैं ,तुम या वे न सही
कम से कम फूल तो सही
सूरज को इतना देख सके
समाहित हो जाय उसमें
जिजीविषा की उर्जा
की प्रवाहित हो सके उससे
सुगंध चर -अचर विश्व में ।
और
और अधिक अच्छा होगा यदि
मैं तुम या वे
तलाश लें ,अपने -अपने आँगन में
ऐसा कोई कोना
जहाँ से जगा सके हम
फूल के साथ-साथ
उषा के सूरज को देखने की इच्छाशक्ति ।
हाँ
इच्छाशक्ति के उस जागरण के लिए भी
आँगन के छोटे बड़े होने से कोई अन्तर नही पड़ता
यूँ भी
महत्त्वपूर्ण नही है आँगन का छोटा या बड़ा होना .

-विजय रंजन