शैलपुत्री -प्रकृति का पोषण
ब्रह्मचारिणी -ब्रह्माण्ड या खगोल
चंद्रघंटा -कला ,साहित्य ,नाद और शान्ति
कूष्मांडा -तृष्णा और तृप्ति
स्कंदमाता -मातृशक्ति ,स्त्रीभाव
कात्यायनी -पितृकुल रक्षक ,परिचय
कालरात्रि -काल पर विजय
महागौरी -अक्षत सुहाग की प्रतीक ,सौंदर्य
सिद्धिदात्री -धन-धान्य और समृद्धि
देवी के विभिन्न रूपों ब्रह्मचारिणी से लेकर महागौरी तक ,शैलपुत्री से लेकर कालरात्रि तक ,चंद्रघंटा ,कुष्मांडा से लेकर स्कंदमाता और कात्यायनी तक सिद्धिदात्री रूप में संपन्न होता है नवरात्री पूजन । इन्हीं रूपों में समाये हैं मानवता की सुख शान्ति के बीज -मंत्र .किंतु इन नौ दिनों के बाद कौन अनुभव करता है इस तथ्य को ?कौन पूजता है देवी-स्वरूप इन कन्याओं को अष्टमी और नवमी के अलावा ?
ये दो दिन तो गली मोहल्ला ढूंढ कर कन्या जिमाने के दिन हैं ।सात या नौ से कम में काम भी नही चलता ।मुश्किल हो जाती है इतनी कन्याएं आयें कहाँ से । चाय वाली, पान वाली ,काम वाली बाई सबसे बोलो तब कहीं जाकर पाँच -सात कन्याएं जुट पाती हैं । साहब परेशान ,मेमसाब परेशान और छोटी छोटी बच्चियां खा-खाकर परेशान . जितनी मिल जानी उतनी ही सही .साहब बाहर ही पाँव धुला देते हैं कन्याओं के .मेमसाब तब तक कन्याओं के लिए पैकेड ब्रंच तैयार कर चुकी होती हैं । "अजी सुनतेहो , ,अन्दर मत बुलाना ,वुडेन टेल्स ख़राब हो जायेंगे। पैकेट पकड़ा टीका लगा देते है , पैसे भी दे देना । "
अपना बच्चा होने को हो तो " हे भगवान् लड़का ही देना ।" लड़के की इतनी प्रबल इच्छा कीलड़का हो भी गया तो आधा लड़की जैसा । (आख़िर गर्भ में पल रहे बच्चे का स्वभाव तो वातावरण से प्रभावित होगा ही )। यह भी नहीं की पहले से एक भी लड़का नही इसलिए ऐसी सोच ।और फ़िर जीवन में सुख शान्ति की अदम्य इच्छा ।
अब दोनों कैसे सम्भव है ? क्या साल में एक दिन के कन्या-पूजन (खाना खिला देने और कुछ पैसे दे देने में )
में इतनी ताकत है क्या कीविभिन्न रूपों में naari का साथ जीवन को शान्ति ,सुख व् समृद्धि से भर दे.
नन्हे नन्हे से कदम उठाओ – वन स्टेप एट ए टाइम
3 days ago
3 comments:
har kamyab vyakti ke piche ek aurat karan ho isqa yakin nahi. per her nakami ke piche aurat ka nirader ya upeksha ho aisa ahsas hai.
vidya singh said...
आपका आलेख पढ़ कर मृणाल पाण्डेय की कहानी लड़कियाँ याद आ गई जिसमें एक लड़की टीका करवाने से इनकार कर देती है और कहती है जब तुम लोग लड़कियों को पसंद नहीं करते तो झूठ मूठ में दिखावा क्यों करते हो?अभी सारी लड़कियों में न यह चेतना है न इतनी हिम्मत। बहुत प्रासंगिक प्रश्न की ओर आप ने ध्यान आकृष्ट किया है। धन्यवाद ।
Tuesday, 07 October, 2008
aapki baat sahi hai
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